मध्यप्रदेश में कफ सिरप से 19 बच्चों की मौत
मध्यप्रदेश में कफ सिरप कोल्ड्रिफ पीने से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 19 हो गई है। इस सिरप की जांच में सामने आया है कि यह तमिलनाडु के श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर नामक कंपनी द्वारा तैयार किया गया था। यह फैक्ट्री चेन्नई के बाहरी इलाके में, बैंगलुरु हाईवे पर स्थित है।
जहरीले केमिकल की खरीद और छिपाई गई जानकारी
जांच के दौरान पूछताछ में फैक्ट्री के मालिक रंगनाथ ने स्वीकार किया कि उसने नॉन फार्मास्युटिकल ग्रेड के प्रोपलीन ग्लायकॉल की 50-50 किलो की दो बोरियां मंगवाई थीं, यानी कुल 100 किलो जहरीला केमिकल खरीदा गया था। आश्चर्य की बात यह है कि इस खरीद की कोई एंट्री फैक्ट्री के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं थी। रंगनाथ ने इस केमिकल का भुगतान कैश और ऑनलाइन जी-पे से किया था।
कंपनी ने यह घटिया क्वालिटी का प्रोपलीन ग्लायकॉल सनराइज बायोटेक कंपनी से खरीदा था और इसका कोई टेस्ट नहीं कराया गया।
#WATCH | छिंदवाड़ा: मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत पर कहा, "यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। छिंदवाड़ा, पांढुर्ना और बैतूल में मिलाकर 20 मासूम बच्चों की मौत हो गई है। सरकार सख्त कार्रवाई कर रही है। छिंदवाड़ा से पुलिस की टीमें कोल्ड्रिफ… pic.twitter.com/NVAbpmzJjg
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 8, 2025
सिरप में जहरीले तत्वों की खतरनाक मात्रा
जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सिरप में डाईएथिलीन ग्लायकॉल और एथिलीन ग्लायकॉल की मात्रा तय सीमा से 486 गुना ज्यादा थी। यह सिरप न सिर्फ बच्चों के लिए घातक साबित हुआ, बल्कि इतनी मात्रा में यह बड़े से बड़े जानवर, जैसे हाथी की भी किडनी खराब कर सकता है।
मार्च 2025 में खरीदा गया था केमिकल
जांच में यह भी सामने आया कि कंपनी ने यह केमिकल मार्च 2025 में चेन्नई की सनराइज बायोटेक से खरीदा था। लेकिन यह नॉन फार्मास्युटिकल ग्रेड का था, जो कारों के कूलेंट या एंटीफ्रीज में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी शुद्धता की जांच नहीं की गई थी। जबकि दवा निर्माण में केवल फार्मास्युटिकल ग्रेड केमिकल का उपयोग किया जाना चाहिए।
कंपनी ने सबूत छिपाने की कोशिश की
तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने जांच में पाया कि इसी घटिया केमिकल से कई अन्य दवाएं भी बनाई गई थीं। जांच टीम जब फैक्ट्री पहुंची तो पाया गया कि अब प्रोपलीन ग्लायकॉल का स्टॉक वहां मौजूद नहीं था, यानी कंपनी ने उसे छिपाने की कोशिश की।
विभाग ने मंगलवार (7 अक्टूबर 2025) को फैक्ट्री के मालिक डॉ. जी. रंगनाथन और मुख्य केमिस्ट अधिकारी के. माहेश्वरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया। कंपनी की दीवारों पर भी नोटिस चिपकाए गए।
गंभीर उल्लंघन का आरोप
नोटिस में कहा गया है कि कंपनी ने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 का गंभीर उल्लंघन किया है। दवाओं में गुणवत्ता का उल्लेख नहीं था और उनमें डायथिलीन ग्लायकॉल (48.6% w/v) की खतरनाक मात्रा पाई गई। यह एक जहरीला पदार्थ है जो सेहत के लिए अत्यंत हानिकारक है।
रंगनाथन और माहेश्वरी को पांच दिन का समय दिया गया है कि वे जवाब दें कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए। साथ ही कंपनी को सारा स्टॉक वापस लेने, वितरण रिकॉर्ड, मास्टर फॉर्मूला रिकॉर्ड, और प्रोपलीन ग्लायकॉल जैसे कच्चे माल की खरीद के सभी दस्तावेज प्रस्तुत करने के आदेश दिए गए हैं।
फैक्ट्री मानकों पर खरी नहीं उतरी
जांच में यह भी सामने आया कि श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर की फैक्ट्री दवा निर्माण के मानकों पर बिल्कुल खरी नहीं उतरती थी। यहां फिल्टर्ड हवा की व्यवस्था नहीं थी, दवाओं को गंदगी में रखा जाता था, उपकरण टूटे और जंग लगे मिले। निर्माण प्रक्रिया खुले में की जाती थी और कमरे में तापमान व नमी की कोई निगरानी नहीं थी। बाहर के बिना ट्रीटमेंट वाले पानी का इस्तेमाल किया जा रहा था, जिससे दवाएं आसानी से दूषित हो सकती थीं।
जांच टीम को फैक्ट्री में क्या मिला
जांच टीम ने फैक्ट्री में पाया कि कमरे जल्दबाजी में खाली किए गए थे और वहां से तेज रासायनिक गंध आ रही थी। प्लास्टिक के जारों और नीले-सफेद कंटेनरों के ढेर लगे थे। कमरे का फर्श गंदा और दागदार था, खिड़कियां कसकर बंद की गई थीं।
जमीन पर काली बाल्टियाँ, धातु के फ्रेम और बड़े ड्रमों के ढक्कन बिखरे पड़े थे। राख और मलबे के बीच प्रोनिक आयरन सिरप के अधजले लेबल और साइप्रोहेप्टाडाइन हाइड्रोक्लोराइड सिरप आईपी की बेकार बोतलें मिलीं।
एक नीले बैरल के लेबल पर लिखा था – “लिक्विड ग्लूकोज, 300.80 किलोग्राम” और “खुदरा बिक्री के लिए नहीं”, जिसमें जून 2025 की निर्माण तिथि और जून 2027 की एक्सपायरी लिखी थी।