कभी छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और झारखंड के दुर्गम इलाकों में खुलेआम घूमने वाले नक्सली अब इतिहास बनने की कगार पर हैं। एक समय था जब हजारों की संख्या में माओवादी उग्रवादी संगठन के सदस्य दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और गढ़चिरौली जैसे क्षेत्रों में सक्रिय थे, लेकिन सुरक्षा बलों की वर्षों की सुनियोजित कार्रवाई और स्थानीय सहयोग के चलते अब नक्सल आंदोलन पूरी तरह से बिखरता नजर आ रहा है। भारत में नक्सलियों का सबसे बड़ा संगठन, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी), अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, अब इस संगठन में महज 300 हथियारबंद नक्सली ही बचे हैं, जो अलग-अलग जगहों पर छिपे हुए हैं।
नक्सलियों की केवल सैन्य ताकत ही नहीं घटी है, बल्कि उनका नेतृत्व तंत्र भी पूरी तरह चरमरा गया है। उनकी सबसे ऊंची निर्णय लेने वाली संस्था पोलित ब्यूरो (PB) में कभी 14 सदस्य हुआ करते थे, लेकिन अब मात्र चार ही सक्रिय सदस्य बचे हैं—मुप्पल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति (जिसकी मृत्यु की भी आशंका है), मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ अभय, थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी और मिसिर बेसरा। वहीं, सेंट्रल कमेटी (CC) के सदस्य भी या तो मारे जा चुके हैं, गिरफ्तार हो चुके हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जिससे अब सिर्फ 14 सक्रिय सदस्य बचे हैं, जिनमें चार पोलित ब्यूरो सदस्य भी शामिल हैं।
CRPF के बस्तर रेंज के IG पी. सुंदरराज ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नक्सलियों की कमांड संरचना पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। खुफिया जानकारी, ड्रोन निगरानी, सतत ऑपरेशनों और आत्मसमर्पण की नीति ने संगठन को अंदर से तोड़ दिया है। IG के अनुसार, दंडकारण्य क्षेत्र और कुछ अन्य जंगलों में 300 से भी कम नक्सली बचे हैं, जिनके पास अब सिर्फ दो विकल्प हैं—या तो आत्मसमर्पण करें या मारे जाएँ।
सुरक्षाबलों ने बीते वर्षों में कई सफल ऑपरेशनों के माध्यम से शीर्ष नक्सली कमांडरों को ढेर किया है। मई 2025 में नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू, जो कि CPI (माओवादी) का शीर्ष नेता था, को छत्तीसगढ़ पुलिस की स्पेशल यूनिट DRG ने एक जटिल ऑपरेशन में मार गिराया। यह नक्सली आंदोलन के इतिहास की सबसे बड़ी सफलता मानी गई। इसके बाद 6 जून 2025 को बीजापुर जिले में ही नरसिम्हा चालम उर्फ सुधाकर को मारा गया, जिस पर ₹40 लाख का इनाम था और वह आंदोलन में बसवराजू के बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी था। हाल ही में, इसी जिले में एक अन्य ऑपरेशन में ₹45 लाख के इनामी भास्कर को सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया, जो कि बचे हुए गिने-चुने टॉप कमांडरों में से एक था।
सरकार द्वारा नक्सलियों पर कड़ा रुख अपनाने के बाद 2024 और 2025 नक्सल विरोधी अभियानों के लिहाज से निर्णायक वर्ष साबित हुए हैं। 2024 में कुल 290 नक्सलियों को मारा गया, 1,090 गिरफ्तार किए गए और 881 ने आत्मसमर्पण किया। 2025 में यह कार्रवाई और तेज हुई है, जहाँ अब तक 226 नक्सली मारे जा चुके हैं, 418 गिरफ्तार हुए हैं और 896 ने आत्मसमर्पण किया है। यहां तक कि कभी नक्सलियों का मजबूत गढ़ माने जाने वाले कर्रेगुट्टा पहाड़ जैसे क्षेत्रों को भी खाली करवा लिया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से एलान किया है कि भारत को 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त किया जाएगा। उन्होंने नक्सलियों को आत्मसमर्पण का आखिरी मौका देते हुए चेतावनी दी है कि यदि वे मुख्यधारा में लौटना नहीं चुनते, तो उन्हें सुरक्षा बलों की गोलियों का सामना करना पड़ेगा। सरकार की यह निर्णायक नीति, सुरक्षा बलों की तत्परता और जनता का सहयोग मिलकर अब एक ऐसे युग का अंत कर रहे हैं जिसने वर्षों तक भारत के विकास में बाधा उत्पन्न की थी।