संभलना होगा! औसत से 17 गुना तेजी से पिघली ग्रीनलैंड की बर्फ — जानिए यह क्यों खतरनाक है
ग्लोबल वार्मिंग के खतरे लगातार बढ़ते जा रहे हैं और हालिया रिपोर्टें स्थिति की गंभीरता को उजागर कर रही हैं। 11 जून को वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) नेटवर्क द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि मई महीने में ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर सामान्य औसत की तुलना में 17 गुना तेजी से पिघली, जिसने आइसलैंड समेत पूरे आर्कटिक क्षेत्र को प्रभावित किया।
मई में आइसलैंड का रिकॉर्ड तोड़ तापमान
15 मई को आइसलैंड में तापमान 26 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया, जो कि इस उपनगरीय द्वीप के लिए साल के इस समय बिल्कुल असामान्य था। यह 1991-2020 के औसत मई तापमान से 13 डिग्री सेल्सियस अधिक है। देश के 94% मौसम केंद्रों ने मई में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी दर्ज की, जो इस क्षेत्र की जलवायु स्थिरता के लिए खतरे की घंटी है।
ग्रीनलैंड में बर्फ के पिघलने की खतरनाक रफ्तार
इंपीरियल कॉलेज लंदन के एसोसिएट प्रोफेसर फ्राइडेरिक ओटो ने कहा कि यदि मई में आई हीटवेव न होती, तो ग्रीनलैंड की बर्फ इतनी तेजी से नहीं पिघलती। उन्होंने चेताया कि जलवायु परिवर्तन के बिना यह स्थिति संभव ही नहीं थी। इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि इससे समुद्र के स्तर में अपेक्षा से कहीं अधिक वृद्धि होगी।
आर्कटिक क्षेत्र सबसे अधिक जोखिम में
एक स्टडी के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र बाकी पृथ्वी की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। पूर्वी ग्रीनलैंड में मई की हीटवेव के दौरान तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 3.9 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। यह वैश्विक जलवायु प्रणाली में असंतुलन को दर्शाता है, जिसका प्रभाव केवल स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर पड़ेगा।
क्यों है यह खतरे की घंटी?
ग्लेशियरों का तेज़ी से पिघलना समुद्र स्तर में वृद्धि, तटीय इलाकों में बाढ़, और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव जैसे गंभीर परिणाम ला सकता है। ग्रीनलैंड के स्वदेशी समुदायों की जीवनशैली भी इससे प्रभावित हो रही है, क्योंकि बर्फ पर शिकार करने की परंपरागत पद्धतियां मुश्किल हो गई हैं। वहीं, ग्रीनलैंड और आइसलैंड में अधिकांश बुनियादी ढांचा ठंडे मौसम को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिससे अत्यधिक गर्मी में सड़कों और निर्माणों को नुकसान, तथा बाढ़ की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
WWA की चेतावनी के अनुसार, मई जैसी गर्मी की घटनाएं अब हर 100 वर्षों में दो बार हो सकती हैं — जो पहले दुर्लभ मानी जाती थीं। यह बदलाव दुनिया के लिए स्पष्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य का खतरा नहीं, बल्कि वर्तमान की वास्तविकता है, जिससे निपटना आवश्यक है।