उत्तर प्रदेश एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (ATS) की जाँच में ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त मौलाना शमशुल हुदा खान से जुड़ा एक बड़ा नेटवर्क उजागर हुआ है, जो पाकिस्तान कनेक्शन, फर्जी विदेशी फंडिंग और देशविरोधी गतिविधियों से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। जाँच रिपोर्ट में सामने आया कि संतकबीरनगर के रहने वाले मौलाना शमशुल हुदा खान ने ब्रिटिश नागरिक बनने के बाद भी भारत में रहकर मदरसों का संचालन जारी रखा और सरकारी वेतन तथा पेंशन तक प्राप्त की। इस खुलासे के बाद संतकबीरनगर पुलिस ने उनके खिलाफ धोखाधड़ी, विदेशी मुद्रा अधिनियम के उल्लंघन और देशविरोधी गतिविधियों के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है।
रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना हुदा खान आजमगढ़ के मुबारकपुर स्थित दारुल उलूम अहले सुन्नत मदरसा अशरफिया में लंबे समय तक शिक्षक रहे। जबकि वे 2007 में ब्रिटेन की नागरिकता प्राप्त कर चुके थे, इसके बावजूद उन्होंने 2017 तक भारत में सरकारी सेवा जारी रखी। यहाँ तक कि उन्हें 2017 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) देकर नियमित पेंशन भी स्वीकृत की गई थी, जिसे अब जांच एजेंसियों ने पूरी तरह “अनियमित और अवैध” करार दिया है।
ATS की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि शमशुल हुदा खान ने कई बार पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों की यात्राएँ कीं, जहाँ वह स्थानीय मौलवियों और अन्य संदिग्ध लोगों से मिला। लौटने के बाद उसने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी समूहों और कट्टरपंथी नेटवर्क से संपर्क बनाए रखे। इन गतिविधियों को भारत में धार्मिक कट्टरता और फॉरेन फंडिंग के जरिए संगठित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
खुफिया सूत्रों के अनुसार, मौलाना हुदा इंग्लैंड और अन्य यूरोपीय देशों से विदेशी फंडिंग जुटाता था और उसे पूर्वांचल के मदरसों तक पहुँचाता था। इस प्रक्रिया में वह कमीशन काटता था और फंड का बड़ा हिस्सा गैरकानूनी गतिविधियों में लगाया जाता था। यह पूरा नेटवर्क FEMA (Foreign Exchange Management Act) और अन्य भारतीय कानूनों का उल्लंघन था।
ATS रिपोर्ट के आधार पर 2 नवंबर 2025 को संतकबीरनगर के खलीलाबाद थाना क्षेत्र में एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उसका मदरसा सील कर दिया, और उससे जुड़े दोनों मदरसों — एक आजमगढ़ और दूसरा संतकबीरनगर — की मान्यता रद्द कर दी। साथ ही, उसकी NGO ‘रज़ा फाउंडेशन’ का पंजीकरण भी निरस्त कर दिया गया है।
गौरतलब है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। मौलाना शमशुल हुदा खान के खिलाफ पहले भी दो केस दर्ज हैं, जिनमें विदेशी फंडिंग, पाकिस्तानी संपर्क और संदिग्ध लेन-देन के आरोप शामिल हैं। अब सरकार और जाँच एजेंसियाँ इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुँचने में जुटी हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि भारत में ऐसे और कितने मदरसे या संगठन विदेशी फंडिंग के जरिए देशविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं।
यह मामला न केवल धार्मिक संस्थानों में विदेशी फंडिंग की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह कुछ लोग विदेशी नागरिकता का दुरुपयोग कर भारत में सक्रिय नेटवर्क चलाते रहे हैं। यूपी ATS की यह कार्रवाई राज्य और केंद्र सरकार की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत विदेशी फंडिंग और आतंक-समर्थक नेटवर्क पर सख्त निगरानी रखी जा रही है।
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