पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) की शुरुआत के साथ ही राजनीतिक माहौल गरमा गया है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच आरोप-प्रत्यारोप और तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। इसी क्रम में टीएमसी के वरिष्ठ सांसद कल्याण बनर्जी ने भाजपा नेताओं शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार को खुली चुनौती देते हुए विवादित बयान दिया है।
कल्याण बनर्जी ने एक जनसभा में कहा,
“बीजेपी के नेता जब जनता से मिलने आते हैं तो सुरक्षा के घेरे में रहते हैं। अगर उनमें हिम्मत है और वे वास्तव में जनता से जुड़े हैं, तो बिना CISF की सुरक्षा के दानकुनि आकर दिखाएँ। हम बाहर खड़े रहेंगे और देखेंगे कि वे लौटकर जा भी पाते हैं या नहीं।”
उनका यह बयान सीधे तौर पर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार की ओर इशारा करता है। बनर्जी ने आगे कहा कि वे चाहें तो पहले सूचना दे दें कि वे दानकुनि कब आएँगे — “हम भी अपने कार्यकर्ताओं के साथ बाहर रहेंगे, वहाँ CISF या BSF नहीं होगी, पुलिस भी नहीं होगी। तब देखेंगे कि वे कितनी ताकत रखते हैं।”
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कल्याण बनर्जी का यह आक्रामक बयान ऐसे समय पर आया है जब बंगाल में SIR अभियान को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। बीजेपी का कहना है कि वह इस अभियान के जरिए अवैध मतदाताओं को हटाने और मतदाता सूची को पारदर्शी बनाने का प्रयास कर रही है। उनका आरोप है कि राज्य में बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी मतदाता शामिल किए गए हैं, जो चुनावी संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।
वहीं, टीएमसी का पलटवार है कि भाजपा SIR को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है, ताकि भय का माहौल बनाया जा सके और बंगाल के लोगों में असुरक्षा फैलाई जा सके। पार्टी का आरोप है कि भाजपा का असली मकसद “वोटर सूची में गड़बड़ी कर अपने लिए राजनीतिक लाभ हासिल करना” है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बंगाल में मतदाता सूची का यह विशेष पुनरीक्षण अभियान, जो सामान्यतः एक प्रशासनिक प्रक्रिया होती है, अब भाजपा और टीएमसी के बीच राजनीतिक संघर्ष का नया मैदान बन गया है। एक तरफ भाजपा पारदर्शिता और सुधार की बात कर रही है, तो दूसरी तरफ टीएमसी इसे “राजनीतिक डर और ध्रुवीकरण की साजिश” बता रही है।
हालाँकि, कल्याण बनर्जी के इस बयान ने माहौल को और भी गर्मा दिया है, और अब राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर इस बात पर है कि भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार इस चुनौती का क्या जवाब देते हैं — और क्या यह विवाद SIR अभियान की मूल प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।
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