राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा प्रस्तुत ‘पंच परिवर्तन’ अभियान भारतीय संविधान की आत्मा से गहराई से जुड़ा हुआ एक ऐसा सामाजिक नवाचार है, जो भारत को सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में विकसित कर विश्वगुरु की दिशा में अग्रसर करने का प्रयास करता है। इस अभियान के पांच प्रमुख स्तंभ—स्वदेशी, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य और पर्यावरण संरक्षण—न केवल सामाजिक जीवन को संस्कारित करने का माध्यम हैं, बल्कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित स्वतंत्रता, न्याय, समता और बंधुत्व जैसे मूल्यों के भी मूर्त रूप हैं। ‘स्वदेशी’ के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को मूर्त किया जा रहा है, जो संविधान के भाग IV में नीति निदेशक तत्वों की भावना से मेल खाता है। इसी प्रकार, ‘कुटुंब प्रबोधन’ पारिवारिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के साथ-साथ अनुच्छेद 51A(h) में वर्णित वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीय चेतना को बढ़ावा देता है। ‘सामाजिक समरसता’ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में निहित समानता और छुआछूत के उन्मूलन की दिशा में संघ का व्यावहारिक प्रयास है। ‘नागरिक कर्तव्य’ के अंतर्गत अनुच्छेद 51A में वर्णित कर्तव्यों की स्मृति और उनका अभ्यास भारतीय समाज को कर्तव्यनिष्ठ और उत्तरदायी नागरिकों में परिवर्तित करने की पहल है। वहीं, ‘पर्यावरण संरक्षण’ प्रकृति के साथ सहजीवन की सनातनी अवधारणा को पुनर्स्थापित करता है, जो भारतीय न्याय प्रणाली और संवैधानिक मूल्यों—जैसे सतत विकास और जैविक संसाधनों की रक्षा—से गहराई से जुड़ा हुआ है।
यह पंच परिवर्तन, व्यक्ति से लेकर विश्व तक की यात्रा है—जहाँ स्वदेशी से स्वयं का उत्थान होता है, कुटुंब प्रबोधन से परिवार सशक्त होता है, सामाजिक समरसता से समाज में सद्भाव आता है, नागरिक कर्तव्यों से राष्ट्र मजबूत होता है, और पर्यावरण संरक्षण से संपूर्ण विश्व की भलाई सुनिश्चित होती है। इस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह अभियान संविधान की विधिक संरचना को उसकी आत्मिक चेतना से जोड़ने वाला महायज्ञ है, जो भारत को केवल एक कर्मभूमि नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से समरस, उत्तरदायी और वैश्विक नेतृत्व की ओर उन्मुख राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
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